हमारे गरीब दलित आदिवासी ,कंजर पारधी ,और फ़क़ीर जैसे अन्य कई (विमुक्त, घुमक्कड़ जनजातियों ) के लोगों के लिए ये सवाल अभी भी जिन्दा हैं की ये भारत देश या यह राष्ट्र उनको लेकर बनता है या नही ..?
पारधी समुदाय का, सामाज और पुलिस के सामने कोई वजूद या इज्ज़त नही हैं ये बात हम हमारे गाँव और शहरों में खुले आम देख सकते हैं | यदि पुलिस किसी कारण से पकड़ लेती हैं और उनको पता चला की ये व्यक्ति पारधी हैं फिर तो पुलिस आपके साथ जो चाहे कर सकती है | बहुत सारी पारधी समुदाय की कुछ येसी महिलाएं है जो पुलिस प्रताड़ना और समुदाय से प्रताड़ित हो कर गईं हैं और दुसरे समुदाय का हिस्सा बनकर रह रही हैं मगर आज भी वे पुलिस और सामाज से अपनी पहचान और जाती को छिपाती हैं ताकि वो अपनी जिंदगी एक गरीमा के साथ जी पाए
पारधी और कंजर समुदाय को बाज़ार जाना हो या किसी दुसरे राज्य में जाना हो तो पुलिस थाने में उनको अपनी मौजूदगी बतानी और दिखानी पढ़ती हैं | ये समुदाय चोरी करे या ना करे लेकिन इनकी गिनती चोरों में ही करते हैं | ये अधिकारी और ये हिंदुत्ववादी सरकार हमें आये दिन नीचा दिखाती है – शारब पितो हो, कितना गन्दगी मचाते हो ?.. कितना गन्दा रहते हो ? … कैसा खाना खाते हो …मेहनत नही करते… तुम लोग तो पुरे के पुरे जानवर हो, तुम्हे यहाँ रहने का कोई हक़ नही हैं |
कब तक ये अधिकारी और ये हिन्दुत्ववादी सरकार हमें बताएगी की हमें कैसे रहना हैं?
हमारी लड़ाई सरकार और हिन्दुत्ववादी समाज से और उनके घटिया विचारों से हैं जो गैरबराबरी को बढावा देती हैं | और अभी लड़ाई जारी है खेतों मैं खलियानों में गुलशन और मसानों में |
by Madhu Dhurve, Madhya Pradesh Mahila Manch, Bhopal, Madhya Pradesh, India; [email protected]
For more on Antipode’s “Conjunctural Insurrections” series – an experiment to amplify voices often unheard and invisibilised in politics, daily life, and academic discourse – see https://antipodeonline.org/2020/06/23/conjunctural-insurrections/